श्रवण शर्मा। रायपुर। World Heritage Day 2023: राजधानी रायपुर के जिस कलेक्ट्रेट से पूरे जिले की व्यवस्था संचालित होती है, उसके ठीक सामने चंद कदमों की दूरी पर लगभग 150 साल पुराना संग्रहालय स्थित है। यह देश के पुराने नौ संग्रहालयों में से एक है। इंग्लैंड की महारानी के ताज के आकार में 1875 में अष्टकोणीय संग्रहालय बनाया गया था। इस संग्रहालय में अनेक ऐतिहासिक महत्व की वस्तुएं, प्राचीन मूर्तियां रखी जाती थीं। जब संग्रहालय छोटा पड़ने लगा, तब राजनांदगांव के राजा महंत घासीदास ने जमीन दान में दी। 1953 में संग्रहालय बनकर तैयार हुआ। पुराने संग्रहालय को यहां स्थानांतरित किया गया। इसका उद्घाटन करने देश के प्रथम राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद रायपुर पहुंचे थे। 70 साल बाद इस भवन का पुन:जीर्णोद्धार किया गया था, जो अब अपने नए रूप में पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है।
इस साल की थीम हेरिटेज चेंजेस पर दर्शन यात्रा
महंत घासीदास संग्रहालय के अध्यक्ष डिप्टी डायरेक्टर डा.प्रतापचंद्र पारख बताते हैं कि विश्वभर में हर साल 18 अप्रैल को वर्ल्ड हैरिटेज डे यानी विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है। यह दिवस मनाने का श्रेय पेरिस स्थित इंटरनेशनल काउंसिल आन मान्यूमेंट्स एंड साइट्स को जाता है। पहली बार 1982 में ट्यूनेशिया में यह दिवस मनाया गया था। इसका उद्देश्य सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और प्रोत्साहित करना है।
इस साल 2023 में यूनेस्को की थीम हेरिटेज चेंजेस के रूप में इस दिवस को सेलिब्रेट किया जा रहा है। 18 अप्रैल को सुबह सात बजे पुरानी बस्ती के प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्थलों जैतूसाव मठ, बावड़ी वाले हनुमान मंदिर, नागरीदास मठ, जगन्नाथ मंदिर आदि इलाकों में छात्रों को भ्रमण कराया जाएगा। इसके पश्चात संस्कृति सभागार में वरिष्ठ पुराविद् जीएल रायकवार प्रो. मिताश्री मित्रा ऐतिहासिक धरोहरों पर वक्तव्य देंगे। संग्रहालय में किस तरह के बदलाव आए हैं, इस पर भी जानकारी दी जाएगी।
तीन मंजिला म्यूजियम में लगी लिफ्ट
तीन मंजिला म्यूजियम में बुजुर्गों को परेशानी न हो इसलिए इस साल लिफ्ट लगाई गई है। अब सीधे दूसरी-तीसरी मंजिल पर रखे गए पुरावशेषों का अवलोकन करने बुजुर्ग जा सकेंगे। म्यूजियम के मुख्य द्वार पर बिलासपुर के समीप ताला गांव में 5वीं-6वीं सदी में मिली आठ फीट ऊंची रूद्र शिव की प्रतिमा का प्रतिरूप स्थापित किया गया है, जो आकर्षण का केंद्र है। प्रतिमा में नाग, छिपकली, मछली आदि जीव प्रदर्शित किए गए हैं। संग्रहालय के बाहर खुले परिसर में जैन धर्म के अनेक तीर्थकरों की प्रतिमाएं स्थापित की है जो प्रदेश की ऐतिहासिकता को प्रदर्शित कर रही हैं।
17 हजार पुरावशेष
संग्रहालय में लगभग चार हजार गैर पुरावशेष और 13 हजार पुरावशेष, कुल 17 हजार से अधिक ऐतिहासिक धरोहरों को संजोकर रखा गया है। इनमें वस्त्र, शस्त्र, सिक्के, शिलालेख, मूर्तियां, आदिवासी जनजीवन, लोककला का संग्रह तीसरी मंजिल में छत्तीसगढ़ के सुदूर जंगली इलाकों और ग्रामीण जनजीवन की झलकियों को प्रदर्शित किया गया है। साथ ही लोक कला में कर्मा नृत्य, बस्तरिया नृत्य, सुआ नृत्य, राउत नाचा नृत्य करते ग्रामीण महिला, पुरुषों की प्रतिमाएं पर्यटकों को आकर्षित करतीं हैं। यहां ऐतिहासिक स्थलों सिरपुर, महार, रतनपुर, आरंग, सिसदेवरी, भोरमदेव, मध्य प्रदेश के कारीतलाई से लाई गई मूर्तियों और धरोहरों को संरक्षित रखा गया है।
राजधानी में ऐतिहासिक धरोहर
राजधानी में अनेक ऐतिहासिक धरोहर हैं, जो शहर के वैभव और इतिहास को दर्शाते हैं। इनमें सरोना का कछुआ वाला शिव मंदिर, राजकुमार कालेज, बूढ़ातालाब, हटकेश्वर मंदिर महादेवघाट, आमा तालाब, गॉस पुस्तकालय, कैसर ए हिंद दरवाजा, जवाहर बाजार, विक्टोरिया जुबली टाउन हाल, डिस्ट्रिक्ट कौंसिल भवन, तेलीबांधा तालाब, दूधाधारी मठ, जगन्नाथ मंदिर टूरी हटरी, कोतवाली थाना, कांग्रेस भवन, गोकुल चंद्रमा हवेली मंदिर, जैतूसाव मठ, सेंट पाल चर्च, छत्तीसगढ़ महाविद्यालय, प्रो.जयनारायण पांडेय स्कूल, आनंद समाज लाइब्रेरी, महामाया मंदिर, बंजारी धाम, बूढ़ेश्वर मंदिर आदि शामिल हैं।