बिलासपुर, जोन मुख्यालय का रेलवे स्टेशन है। लेकिन, यहां यात्रियों को जिस तरह सुविधा मिलनी चाहिए, उसका अभाव है। आलम यह है कि यात्री टूट-फूटे चबूतरे में बैठकर ट्रेन का इंतजार कर रहे हैं। इसके कारण उन्हें असुविधा होती है। इसके अलावा चोट भी लगने का खतरा बना हुआ है। इसके बावजूद इंजीनियरिंग विभाग ध्यान नहीं दे रहा है। इसके चलते यात्रियों में नाराजगी है।
बिलासपुर रेलवे स्टेशन बेहद महत्वपूर्ण है। दरअसल यहां से सभी दिशाओं के लिए ट्रेन की सुविधा मिलती है। इसीलिए जोन के अन्य स्टेशनों की तुलना में यहां यात्रियों की अधिक भीड़ रहती है। अभी संख्या कम है। लेकिन, कोरोना के पहले यहां संख्या 60 हजार यात्री थी। इसी के अनुरूप में बैठकर व्यवस्था की गई। मापदंड के अनुसार यहां बैठक व्यवस्था है, लेकिन उनकी स्थिति सही नहीं है।
खासकर चबूतरे की। सभी आठ प्लेटफार्म के चबूतरे में टाइल्स लगी हुई। ताकि यात्रियों को असुविधा न हो। लेकिन अधिकांश चबूतरे जर्जर हो गए हैं। ऊपर व किनारे दोनों तरफ की टाइल्सें टूट गईं है या फिर उखड़ चुकी है। यात्री इसी जर्जर चबूतरे में बैठकर ट्रेन का घंटों का इंतजार करते हैं। घंटों इंतजार इसलिए क्योंकि किसी भी दिशा की ट्रेनें समय पर नहीं चल रही है। यात्री जर्जर चबूतरे में बैठे रहते हैं।
इसके कारण उन्हें तकलीफ होती है। चोट लगने के अलावा कपड़े में फटने का खतरा रहता है। टूट- फूट के कारण टाइल्स की स्थिति खतरनाक है। यात्री हड़बड़ी में बैठता है या फिर ट्रेन पकड़ने का प्रयास करता है। खतरा इसी स्थिति में रहती है। ऐसा नहीं है कि रेल प्रशासन को यात्रियों की इस अव्यवस्था के बारे में जानकारी नहीं है। उन्हें मालूम है। लेकिन, इंजीनियरिंग विभाग मरम्मत करने में जरा भी रुचि नहीं ले रहा है।
इसका खामियाजा यात्रियों को भुगतना पड़ रहा है। यात्रियों का कहना है कि बैठक, पंखे, बिजली व पानी ये सभी व्यवस्थाएं रेलवे को करनी है। यह नियम में हैं। लेकिन, जोनल मुख्यालय के स्टेशन की हालत देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि रेलवे यात्रियों को सुविधा देने में कितनी गंभीर है। मुख्यालय के इस स्टेशन का यह हाल है तो दूसरे स्टेशनों की स्थिति कितनी दयनीय होगी।