Home आपकी बात रीपा से ग्रामीणों की बदली तकदीर, हर सपने हो रहे साकार, चेहरे में आई खुशियां, अब रोजगार के लिए जाना नही पड़ रहा दूसरे राज्य…..पढ़िये पूरी खबर

रीपा से ग्रामीणों की बदली तकदीर, हर सपने हो रहे साकार, चेहरे में आई खुशियां, अब रोजगार के लिए जाना नही पड़ रहा दूसरे राज्य…..पढ़िये पूरी खबर

by Naresh Sharma

उपेन्द्र डनसेना रायगढ़


रायगढ़।
कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के 7 ब्लाकों में ग्रामीण क्षेत्र के उद्यमी युवा व महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए रीपा (रूरल इडस्ट्रीयल पार्क ) का निर्माण किया गया है। ताकि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों की ओर पलायन न करना पड़े। लेकिन सरकार बदलते ही कुछ ब्लाक में यह रीपा बंद होने के कगार पर पहुंच चुकी है वहीं कुछ में आज भी महिलाएं अच्छा खासा पैसा कमाते हुए अपने सपने साकार कर रहीं हैं।

मिली जानकारी के मुताबिक रायगढ़ जिले के सभी 7 ब्लॉक के 14 ग्राम पंचायत में रीपा का निर्माण कांग्रेस सरकार के समय हुआ है। प्रत्येक रीपा में 2 करोड़ रुपए खर्च कर एन्फ्राक्टचर, मशीनी व मैनीफक्चरिंग पर काम किया था। इस योजना का उद्देश्य था कि ग्रामीण क्षेत्रो के लोगों को रोजगार के अवसर मिले और उन्हें दूसरे प्रान्तों में रोजी रोटी की तलाश में न जाना पड़े। हमने जब पुसौर ब्लाक के तरड़ा गांव में संचालित महात्मा गांधी ग्रामीण आद्योगिक पार्क पहुंच कर वहां के रीपा के अंतर्गत चल रहे स्पर्श संबलपुरी वस्त्रालय कार्यशाला पहुच कर वहां कार्य कर रही महिलाओं और प्रबंधक से भी चर्चा की।

आसपास के गांव की महिलाओं को मिला रोजगार
महिलाओं ने बताया कि उनके गांव में रीपा खुलने से आसपास की 3 से 4 गांव की महिलाओं को यहां आसानी से रोजगार मुहैया हुआ है। यहां ट्रेनिंग के बाद उन्होनें काम शुरु किया है जिससे उन्हें घर के लिए पैसे और अपने सपने पूरे करने का अवसर मिला है। एक महिला ने यह भी कहा कि पहले उसका बीटा पैसे के अभाव हिंदी माध्यम में पढ़ता था उसे वो अब अंग्रेजी माध्यम की स्कूल में दाखिल करा चुकी है।

हाथों हाथ बिक जाता है इनके बनाये कपड़े
वहीं प्रबंधक गजानंद गुप्ता ने बताया कि उनके संस्थान में 8 मशीनों से काम होता है, जिसे आसपास गांव की महिलाओं के द्वारा किया जाता है। उनके यहां खासकर संबलपुरी साड़ी, सूट, गमछा के अलावा कई अन्य वस्त्र बनाये जाते हैं। उन्हें कच्चा मटेरियल ओडिसा से मिल जाता है। पहले उन्हें उनके यहां तैयार किये गए कपड़ो को ओडिशा जाकर ही बेचा जाता था, लेकिन लोग अब उनके शॉप में आ कर ही उनके द्वारा तैयार किये गए कपड़ो की खरीदी कर लेते हैं।

5 से 15 हज़ार तक के बना रहे कपड़े
पुसौर ब्लॉक के तरड़ा गांव में संचालित रूरल इंडस्ट्रीयल पार्क में वीडियोग्राफी, सिलाई मशीन, फेब्रीकेशन, बुनकर, फोटोग्राफी सेटर, क्यिोस्क सेंटर व बेकरी उत्पादन के लिए अगल-अलग भवन बनाया गया है। सिलाई मशीन और बुनकर में महिलाओं को इसकी ट्रेनिंग दी गई। जिसके बाद उन्हें रोजगार उपलब्ध करा रहे है। 10 से 12 ग्रामीण महिला व पुरूषों का रोजगार मिल रहा है। उनके द्वारा तैयार की जाने वाली साड़ी और सूट बाहरी बाजारों में 5 से लेकर 15 हजार तक मे बिक्री हो रही है।

पहले करते थे दुसरे की नौकरी अब खुद दे रहे रोजगार
तरड़ा गांव में महात्मा गांधी ग्रामीण आद्योगिक पार्क में फेब्रीकेशन की शॉप संचालित करने वाले व्यवसायी दिनेश विश्वकर्मा ने बताया की रूरल इंडस्ट्रीय बनने से पहले में वह गांव में ही रहकर छोटा मोटा फेब्रिकेशन का काम करता था। उनके गांव में रूरल पार्क बनने से यहां उन्हें भवन के साथ लोन भी दिया गया है। जिससे अब बाहर से आर्डर लेकर अपने शॉप में ही काम करता हुं। आज की स्थित में 10 लोग मेरे साथ काम करते है। जिन्हें प्रतिमाह 6 से 12 हज़ार तक वेतन देकर 25 से 30 हज़ार की कमाई हर माह हो रही है।

इन 7 ब्लाकों में बना है इइस्ट्रीयल पार्क
रायगढ़ जिले के डोंगीतराई व पंडरीपानी पश्चिम, खरिसया बोतल्दा, तिलाइपाली, भुपदेवपुर, धरमजयगढ़ बरतापाली व दुर्गापूर, लैलूंगा कोड़सिया व मुकडेगा, पुसौर सुपा व तरदा, घरघोड़ा बैहामुडा व ढोरम, तमनार मिलूपारा व तमनार में रूरल इंडस्ट्रीयल पार्क बना है।

इस तरह बनी योजना
रायगढ़ जिले सभी 7 ब्लॉक में 2-2 ग्राम पंचायत का चुनाव किया गया। चयनित पंचायतों में शासन के द्वारा 2 करोड़ रुपए से 60 प्रतिशत हिस्सा 1 करोड 20 लाख रुपए से इन्फ्राक्टचर, 20 प्रतिशत मशीन व एक्यूमेंट, 5 टेक्निकल स्पोट, 17 प्रतिशत यानि 35 लाख रुपए रीपा के उत्पादक प्रोडक्टव के मार्केटिंग, पैकिंग जैसे कामों में उपयोग किया जाना था। जो लभगभ पूरा हो गया है। उद्यमी यहां मेहनत कर बेरोजगारों को रोजगार भी उपलब्ध भी करा रहे हैं।

संशय की स्थिति में व्यवसायी
प्रदेश में सरकार बदलते ही एक के बाद एक योजनाएं लगातार बंद होते जा रहे हैं। जिसका खासा असर ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है। कुछ इइस्ट्रीयल पार्क में ग्रामीण महिला समूहों के द्वारा गोबर पेंट बना कर उनकी बिक्री कर कुछ पैसे की कमाई कर ली जाती थी, अब भाजपा सरकार में इस व्यवसाय पर प्रतिबंध लग चुका है। ऐसे में अब इइस्ट्रीयल पार्क के बाकी बचे हुए व्यसायियो को भी डर है कि अब तक कोई निर्देश आया नही है पता नही आगे इसका संचालन किस तरह होगा।

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