Home छत्तीसगढ़ रामनामी आश्रम में तीन दिनों तक गूंजता रहा राम-राम

रामनामी आश्रम में तीन दिनों तक गूंजता रहा राम-राम

by Naresh Sharma

जांजगीर-चांपा । माघ पूर्णिमा मेले के एक दिन पूर्व चतुर्दर्शी तिथि को श्रद्धालुओं के द्वारा लगातार तीन दिनों तक रात जागरण कर श्री रामचरितमानस की चौपाइयों का करते हैं रात भर भजन कीर्तन कर रात्रि जागरण किया गया और सुबह नगर की जीवनदायिनी नदी चित्रोत्पला गंगा महानदी के त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य स्नान किया गया।

नगर के सावघाट देवी मंदिर के पास रामनामी समाज आश्रम में भी रातभर भजन कीर्तन तथा रामचरितमानस का पाठ किया गया है। रामनामी समाज श्री रामचन्द्र जी को मानने वालों में से है। रामनामी समाज के लोग अपने पूरे शरीर में राम नाम लिखाए हुए रहते हैं मस्तक और यहां तक अपने जिव्हा में भी राम राम लिखाए हुए रहते हैं।

गौरतलब है कि शिवरीनारायण के रामनामी आश्रम में विगत 100 वर्षों से माघ पूर्णिमा के एक रोज पहले समाज के लोग जुटते है और रात जागरण कर श्री रामचरितमानस की चौपाइयों को गाते हैं पुरुषों के साथ ही महिलाएं बड़ी संख्या में यहां आते हैं और मानस की चौपाइयों को रातभर गाते हैं। समाज के लोग मयूर टोपी लगाए हुए रहते हैं। रामनामी समाज पिछड़ा हुआ है शिवरीनारायण के आश्रम को इन्होंने अपने ही पैसो से बनाया हुआ है सरकार से इनको किसी भी प्रकार से आर्थिक सहायता प्राप्त नही होता है।

रामनामी समाज भले ही आज पिछड़ा हुआ है परंतु पूरे सर्वसमाज के लिए यह समाज आज भी अपना आदर्श स्थापित करने का कार्य कर रहा है। आज लोग रोजमर्रा की जिंदगी में ईश्वर और अपने इष्टदेव, अपने आराध्य श्री रामचन्द्र जी को प्रायः भूल रहे हैं और वही रामनामी समाज के लोग अपने पूरे शरीर में राम राम लिखा कर श्री रामचन्द्र जी के प्रति अपना भक्ति भाव प्रदर्शित कर रहे हैं।

रामनामी समाज के लोग उनके अनुयायी श्री रामजी को मानने वाले हैं ये हमेशा राम राम का जाप करते हैं ये शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हैं और मांस मंदिरा से सर्वत्र दूर रहते हैं। छत्तीसगढ़ के रामनामी संप्रदाय के लिए श्री रामचन्द्र जी का नाम उनकी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है एक ऐसी संस्कृति जिसमे राम राम नाम को कण कण में बसाने की परंपरा है।

रामनामी समाज अपने पूरे शरीर पर राम राम का नाम लिखाए हुए रहते हैं। राम राम लिखे हुए कपड़े धारण किया करते हैं अपने घरों की दीवारों और छत पर राम राम लिखाए हुए रहते हैं जब एक दूसरे से मुलाकात हो तब अभिवादन स्वरूप राम राम का नाम लेते हैं। समाज के लोग मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी को मानते हैं और श्री रामचन्द्र जी के अनन्य भक्तिन माता शबरी को भी उनकी भक्ति के लिए भी याद करते हैं।

छत्तीसगढ़ में रामनामी समाज के लोग बड़ी संख्या में निवासरत है। रामनामी समाज श्री रामचन्द्र जी को मानते तो जरूर है पर समाज के लोग मूर्ति पूजा एवं मंदिरो में दर्शन के लिए नही जाते। वर्तमान परिवेश में अब समाज के लोग यदाकदा मंदिर भी जाना शुरू किया है समाज के लोग आज भी अपने आजीविका के लिए खेती किसानी पर ही निर्भर है।

राम-राम का नाम और राम भजन का प्रचार समाज के द्वारा किया जाता है इस संप्रदाय में किसी भी धर्म, लिंग, वर्ण, या जाति का व्यक्ति दीक्षित हो सकता है। अपने रहन सहन और आपसी वार्तालाप में राम राम का अधिकतम प्रयोग, पूरे शरीर में राम राम नाम लिखवाना अनिवार्य है। शरीर के किसी भी हिस्से में राम राम लिखवाने वाले को रामनामी, माथे पर दो राम नाम लिखवाने वाले को शिरोमणि और पूरे माथे पर राम का नाम अंकित करने वाले को सर्वाग रामनामी, शरीर के प्रत्येक हिस्से पर राम राम लिखाने वाले लोगों को नखशिख रामनामी कहा जाता है।

बताया जाता है कि वर्तमान में इनके समाज के नवयुवक अपनी परम्पराओ से दूर होते जा रहे हैं अब ये नवयुवक पूरे शरीर में राम राम का नाम नही लिखाते बल्कि शरीर के कुछ हिस्सों में ही राम राम लिखाते है और अपनी परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। आधुनिक युग और आधुनिकता के दूसरे आयामों ने भी रामनामी समाज के नई पीढ़ियों को प्रभावित किया है।

छत्तीसगढ़ में आज भी मेला और मड़ाई का विशेष महत्व है और आज भी आधुनिकता के कितने साधन उपलब्ध होने के बाद भी लोग एक दूसरे से मिलने मिलाने के लिए मेला और मड़ाई का इंतजार किया करते हैं तभी तो शिवरीनारायण माघ पूर्णिमा मेले के तीन रोज पहले ही रामनामी समाज के लोग शिवरीनारायण रामनामी आश्रम में जुटते है और लगातार तीन दिनों तक श्री रामचरितमानस की चौपाइयों को सस्वर गायन कर श्री रामचन्द्र जी के महिमा का गायन करते हैं।

इस दौरान रामनामी समाज के लोग, महिला और पुरूष समाज के पदाधिकारियों के साथ ही समाज के अध्यक्ष रामप्यारे रामनामी और पूरे छत्तीसगढ़ के रामनामी संप्रदाय के मानने वाले लोग उनके अनुनायी बड़ी संख्या में उपस्थित रहते हैं।

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