जबलपुर, JabalpurNews: काेरोना काल से चरमराई नगर निगम की आर्थिक हालात अब भी खस्ता है। इसके बावजूद फिजूलखर्ची बदस्तूर जारी है। हाल ये है कि नगर निगम के खजाने में सालाना 250 करोड़ रुपये आ रहे हैं पर खर्चा उससे दोगुना यानी चार सौर करोड़ रुपये से भी ज्यादा का हो रहा है। शहर को पानी पिलाने के नाम पर 120 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे। वहीं सफाई व्यवस्था पर तकरीबन 25 करोड़ रुपये खर्च फूंके जा रहे हैं। अधिकारी, कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, वाहन, डीजल सहित 32 करोड़ रुपये सालाना खर्च किए जा रहे। उसमें भी जनप्रतिनिधि, अधिकारियों के कक्षों को संजाने, संवारने, अधिकारियों को नियम विरूद्ध तरीके से वाहन सुख देने सहित एक ही काम को बार-बार कराने में फिजूल खर्ची में भी कोई कमी नहीं की जा रही है। जानकारों की माने तो यदि यही हाल रहा तो पैसे की तंगी शहर के विकास व निर्माण कार्यों में रोड़े अटका सकती है। वैसे भी वर्तमान में जो भी कार्य कराए जा रहे उसमें ज्यादातर स्मार्ट सिटी के मद से कराए जा रहे हैं। नगर निगम फिलहाल सड़क बनवा रहा है।
तीन साल से 26 करोड़ की जगह 13 करोड़ ही मिल रही चुंगी-
जबलपुर को इंदौर-भोपाल की तर्ज पर विकसित करने की दिशा में प्रयास तो किए जा रहे हैं पर अधिकारी और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते ये संभव नहीं हो पा रहा है। विकास के नाम पर जबलपुर की उपेक्षा भी जारी है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश सरकार द्वारा नगर निगम को दी जाने वाली चुंगी क्षतिपूर्ति भी पिछले तीन साल से आधी ही दी जा रही है। यानी निगम को मिलने वाले 26 करोड़ रुपये में से 12 से 13 करोड़ रुपये ही मिल रहे हैं। चुंगी क्षतिपूर्ति से मिलने वाली राशि से ही नगर निगम अधिकारियों को वेतन भत्तों का भुगतान कर रहा है।
अटक सकती है विकास की गाड़ी-
नगर निगम को होने वाली आय और उसमें भी की जा रही फिजूलखर्ची से नगर निगम द्वारा कराये जा रहे व प्रस्तावित कार्य पैसे के अभाव में अटक सकते हैं। क्योंकि नगर निगम ने शहर विकास को लेकर जो खाका खींचा है। उसके तहत 79 वार्डों में 40 करोड़ रुपये से पार्षद मद के काम, 200 करोड़ रुपये से अधोसंरचना के कार्य सहित नर्मदा शुद्धिकरण की दिशा में किए जाने वाले कार्य प्रस्तावित हैं। इसके अलावा उद्यान व प्रकाश व्यवस्था सहित 350 करोड़ रुपये खर्च कर एक लाख घरों में पानी पहुंचाने की योजना भी है।
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आय और खर्च पर एक नजर
– 250 करोड़ रुपये करों व अन्य मदों से निगम को मिल रहे
– 400 करोड़ रुपये सालाना हो रहे खर्च
– 120 करोड़ जल शोधन संयंत्र के रखरखाव व जलापूर्ति पर
– 25 करोड़ रुपये डोर टू डोर कचरा कलेक्शन व सफाई कार्यों पर
– 32 करोड़ रुपये वेतन, भत्ते, वाहन किराया, डीजल पर
– 40 करोड़ पार्षद निधि पर खर्च किए जा रहे
– 120 करोड़ बिजली व्यवस्था पर खर्च हो रहे
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नगर निगम की आय की तुलना में व्यय ज्यादा हो रहे हैं। निगम को 250 करोड़ की आय होती है, जबकि व्यय 400 करोड़ से ज्यादा का है। इसमें संतुलन बनाए रखने राजस्व वसूली अधिक करने और फिजूल खर्ची कम करने के प्रयास किए जाएंगे।
महेश कुमार कोरी, अपर आयुक्त वित्त नगर निगम