Home मध्यप्रदेश Crime File Indore: गड़बड़ कर रही क्राइम ब्रांच की हेल्पलाइन

Crime File Indore: गड़बड़ कर रही क्राइम ब्रांच की हेल्पलाइन

by Naresh Sharma

Crime File Indore: क्राइम फाइल, मुकेश मंगल

आमजन की सुविधा के लिए बनाई हेल्पलाइन भी क्राइम ब्रांच के पुलिसकर्मियों के लिए शुभ-लाभ का माध्यम बन गई। हेल्पलाइन में काम करने वाला स्टाफ न सिर्फ शुभ-लाभ करता, बल्कि देने और लेने वालों पर एहसान भी कर रहा था। डीसीपी (अपराध) निमिष अग्रवाल के कानों तक खबर पहुंची तो रवानगी कर दी। ताजा मामला गुम-चोरी मोबाइल ढूंढने वाली शाखा का है। सिटीजन काप पर आई शिकायतों पर कार्रवाई करने के लिए ट्रेंड पुलिसकर्मियों की टीम बनाई गई थी। तकनीकी कार्यों में दक्ष पुलिसकर्मी शिकायतकर्ता का फोन ट्रेस कर सबसे पहले उस व्यक्ति को बुलाते, जिसके पास फोन मिलता। बेचारे को फोन तो जमा करवाना पड़ता, चोरी और लूट में न फंसने की एवज में अफसर की सेवा भी करता। सबसे ज्यादा दुखी डालर मार्केट और नावेल्टी के दुकानदार थे जो अनजाने में फोन खरीद लेते थे। डीसीपी ने शिकायत मिलने पर कुछ को बाहर का रास्ता दिखा दिया है।

मुखबिर से गच्चा खा गए क्राइम ब्रांच वाले

अवैध वसूली के लिए बदनाम क्राइम ब्रांच खुद ही ठगी का शिकार हो गई। इस बार तेज तर्रार पुलिसवालों को मुखबिर ही गच्चा दे गया। पुलिसवालों का चेहरा दिखाकर व्यापारी से करोड़ों रुपये ले गया। अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) राजेश हिंगणकर अब पुलिसवालों की जांच करवा रहे हैं। सोना-चांदी व्यापारी ने शिकायत में कहा कि कि पुलिसवालों ने उससे 40 लाख रुपये ले लिए। अफसरों ने मुलजिमों की तरह शिनाख्त करवाई और प्रधान आरक्षक लक्ष्मण सहित चार पुलिसवालों को पहचान लिया। लक्ष्मण को बुलाया तो पता चला असली खिलाड़ी तो उसका मुखबिर बबलू है जो उसकी टीम को आगे कर रुपये ले उड़ा। ड्रग्स और हथियारों की खेप पकड़वा चुके बबलू ने इस बार भी बड़ा काम करवाने का आश्वासन दिया था। लक्ष्मण ने तीन पुलिसवालों को उसके कहे स्थान पर भेज दिया। पुलिसकर्मी तो लौट आए लेकिन बबलू ने धमका कर रुपये ले लिए।

वरिष्ठों को दरकिनार कर रहे कनिष्ठ आइपीएस

आयुक्त प्रणाली के बाद पदस्थ हुई एक आइपीएस लाबी दूसरे आइपीएस लाबी असहजता महसूस कर रही है। कुछ अफसरों में तो अब औपचारिक बातचीत होती है। मनमुटाव की असल जड़ प्रमोटी और सीधे आइपीएस हैं। अतिरिक्त पुलिस आयुक्त वरिष्ठ तो हैं लेकिन प्रमोटी आइपीएस हैं। चर्चा है कि जिलें में पदस्थ डीसीपी (सीधे आइपीएस) उन्हें उतना महत्व नहीं देते हैं, जितना आयुक्त (सीधे आइपीएस) को देते हैं। अफसर इस संबंध में खुलकर तो कुछ नहीं बोलते, लेकिन आपसी चर्चा में कभी-कभी दर्द झलक ही जाता है। डीसीपी बनकर आए सीधे आइपीएस न सिर्फ रिपोर्टिंग में नजरअंदाज करते हैं, बल्कि रोजमर्रा के कार्यों में भी उन्हीं निर्देशों को तवज्जो देते हैं, जो आयुक्त कार्यालय से जारी होते हैं। यह बात अलग है कि अतिरिक्त पुलिस आयुक्त नजरअंदाज होने के बाद भी अधीनस्थों के विरुद्ध कभी कुछ नहीं बोलते।

इंटेलिजेंस की सूची देख चौंके अफसर

सूचना संकलन के लिए गठित इंटेलिजेंस की एक सूची ने अफसरों को हैरानी में डाल दिया। सूची का खुलकर तो विरोध नहीं हुआ, लेकिन अफसरों ने अपने ढंग से नाराजगी का संदेश भिजवा दिया। हालांकि बाद में स्पष्ट हुआ कि सूची भले ही इंटेलिजेंस अफसर ने जारी की, लेकिन आदेश आयुक्त हरिनारायणाचारी मिश्र का था। दरअसल, एडीसीपी (इंटेलिजेंस) अमरेंद्रसिंह ने 15 फरवरी को 55 पुलिसकर्मियों को इधर-उधर किया। सूची में अपराध शाखा, पुलिस लाइन और यातायत विभाग के पुलिसकर्मी शामिल थे। संयोग से तीनों की विभागों का प्रभारी डीसीपी निमिष अग्रवाल के पास है और सूची जारी होने तक उनसे पूछा ही नहीं गया। अतिरिक्त पुलिस आयुक्त कार्यालय से भी इस संबंध में चर्चा नहीं की गई। इस बात पर ही बहस चलती रही कि आखिर उनके अधिनस्थ स्टाफ को बगैर जानकारी कैसे बदला। देर शाम स्पष्ट हुआ सूची को अंतिम रूप आयुक्त कार्यालय में दिया गया था।

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